केवट के राम

पितृवचन पालन करने रघुनाथ निकल पड़े है
हैं साथ सीता, लक्ष्मण पास निषादराज भी खड़े है |
त्याग वैभव-ऐश्वर्य महलों का,राजधानी से निकल आये है
दशरथवचन के मर्यादा हेतु , दशरथी वनवास को गले लगाये है
तट पर पहुँच श्री राम, भागीरथी को शीश झुकाते है
गंगा पार कराने का मंतव्य, मित्र निषादराज से सुनाते है |
यह मनसा सुन रघुवीर की
मान आदेश उसे राम धीरज धीर की |
श्रृंगवेरपुर के राजा केवट को बुलवाते है
पार करा दे गंगा प्रभु को, ऐसा आदेश सुनाते है |
कर दर्शन श्री राम के अद्भुत छवि की
संयोजन देख ऐसी मनमोहक और सुन्दर तन्वी की |
वो केवट धन्य-धन्य हुआ
अश्रु बहावत-एकटक निहारत उसका चेतना शून्य हुआ |
पर यूँ राम विश्वरूप को केवट ने जब सहायता मांगते देखा
“आज प्रभु मुझ तुच्छ के भरोसे” ये विधना की कैसी लेखा |
भवसागर खेवैया गंगापार करने को एक मांझी के सहारे खड़े है ?
और पितृ वचन पालन करने रघुनाथ निकल पड़े है ||
लीलाधर के लीला में केवट तनिक सहयोग करने लगा
गंगा पार उतारने से मनाही करने लगा |
यूँ अपेक्षा राघवेन्द्र की, निषादराज से बर्दाश न हुआ
देख नकारन भाव निषाद की, लखन का क्रोध आकाश छुआ |
कहता केवट, सुनो हे रघुनन्दन! तुम्हारे चरणों में कुछ तो माया है
इस चरण रज की सुन बड़ाई, मन भयभीत हो आया है |
जब आपके चरणस्पर्श से वो शीला, सुन्दर नारी बन सकती है
तब काठ की नैया भी रजप्रभाव से, कुछ और रूप धर सकती है |
तुम्ही कहो हे रघुनंदन , हम कैसे तुमको नाव चढ़ा ले
कैसे तुमको हे मेरे राम !, हम गंगा पार करा दे |
केवट की सुन यूँ भोली वाणी शैने मुस्काये बोले अवध बिहारी |
आशंकित न हो मांझी ! माया जैसी कोई बात नही
ठहरे हम साधारण मनुज , हममे समाहित कुछ ख़ास नही|
जो जग कहता कैसे उसको ये मांझी मिथ्या माने
बिन प्रमाण तुमको हे राजा कैसे हम सामान्य जाने |
अब पीछे मुड़ना संभव नही केवट भैया,हम तुम्हारे आसरे खड़े है
और पित्रिवाचन पालन करने रघुनाथ निकल पड़े है |
कहता केवट एक उपाय कि आपके रजकण के जादू का भलीभांति हम जांच करेंगे
पखारेंगे चरण पहले, फिर उसका हम पान करेंगे |
निष्प्रभाव रहा तो निर्भीक हो,तुमको अपनी नाव चढ़ाएंगे
निःसंदेह तुमको सियापति गंगापार उतार देंगे|
यूँ मीठी मुस्कान लिए श्री राम स्वीकृति दे जाते है
निर्धन केवट के भक्ति मोह में त्रिलोकी बंध जाते है
अब जोर आवाज लगता केवट आलय की ओर भागा
चरण पखारे का पात्र अपनी भार्या से माँगा |
केवट युगल भाव-बिभोर हो राम चरण पखारे जा रहे है
वंचित देवता भी जिस आमोद से ,उसका आनंद उठा रहे है
धोकर पैर , पवित्र चरणामृत को केवट ने पान किया
राम से निश्चल प्रेम कर के, जन्म सार्थक कर लिया |
देख मंजर सुरजन –मुनि हाथ जोड़े खड़े है
पित्री वचन पालन करने रघुनाथ निकल पड़े है |
धुला के पैर ,पूरा के मनसा राघव नैया में विराजमान हुए
बिन किये ही पुरे केवट के सारे धाम हुए |
कहते सुर-मुनि धन्यभाग केवट और तुम्हारी नैया है
सवार उसपे वो जिसकी क्षीर सागर में लगती शैया है |
पार उतरने के बाद अवधेश सोच में पड़ जाते है
उतराई देने के लिए जब अपने पास कुछ न पाते है
तब जानकी ने मुद्रिका केवट की ओर बढ़ाया
पर ये कहते केवट ने मस्तक ना में हिलाया
त कतई मोल न लूँगा समान व्यवसाय मेरा-तुम्हारा
मैं गंगा पार करता लेकिन तुम भवसागर की धारा
कल को जब पहुंचूंगा तुम्हारे धाम
बिन शर्त-बिन कर्म देखे, पार कराना भवसागर राम
वो ही हमारी उतराई होगी
इस उधारी की वही भरपाई होगी
कह ये बात सारी केवट प्रभुचरण चूमता है
पाकर भक्ति राम का मन उसका झूमता है
तब एवमस्तु केवट कह वहां से आगे बढ़ जाते है
जीवन के मुल्यो का एक अध्याय सिखा जाते है |
आदर्श और सिद्धांत मेरे राम के रामनाम से भी बडे है |
पीत्री वचन पालन करने रघुनाथ निकल पड़े है|
By:Nishant Kumar Mishra