बदलाव

मैने देखा है..
अपने घर से बिसर कर दूसरा घर कैसे अपनाया जाता है
कुछ अपनी खुसियां छोड़, किसी और की खुशनुमा वजह कैसे बना जाता है।

अपनी घर की मान – मर्यादा संभालते संभालते,
 किसी और घर की इज्जत बन जाना…

हां मैंने देखा है  अपनी बहन को
नादानियों से निकल कर जिम्मेदारियों के साथ ज़िन्दगी गुजारना ||

मां की लाडो रानी,अब एक घर की लक्ष्मी बन चुकी है
पापा की प्यारी सी बिटिया रानी,एक सुंदर सदन की बहुरानी बन चुकी है।

उसके यहां जाता हूं तो,महसूस करता हूं
उसकी अनदेखे क्षमताओं पर।
फक्र करता हूं..
परिवर्तित हुए उसके स्थिर और कुशग्र मनोभाव पर।।

अब कैसे कुशलता से सबकुछ संभाल रही है वो,एक परिवार की मर्यादा
उतर रही हर पहलू पे खरा इतनी शालीनता से, शायद हर एक के उम्मीद से ज्यादा..

जो सुनती ही नही थी मेरी..अब एकमिनान से सब बातें सुनती जाती है
“बातुनी” कहता था उसको पर अब उसकी जुबान मर्यादा में ही सिमट जाती है ।

धैर्य – जिम्मेदारी और संतोष की एक सुंदर सी सूरत बन चुकी है..
हर एक को पसंद आए, वहां वो ऐसी मूरत बन चुकी है ।

खाना खाने के लिए भी उलझते थे हम दोनो..
अब तो वो सबको खिलाने के बाद खुद खाती है
सुबह देर से उठने की भी आदत थी उसको,
अब सबसे पहले उठ कर सबको जगाती है,।

पापा से मुझे डांट दिलाने में वो माहिर बहना
अब फोन पर पापा को मुझे न डांटने की सलाह देती है
फिक्र मेरी इतनी कि
मां को मेरा विशेष ख्याल रखने को कहती है।

मैंने देखा है उसके सारे एहसासो को यूं निखरते हुए।
मैंने देखा है…अपनी बहन को नादानियों से निकल जिम्मेदारियों के साथ ज़िन्दगी गुजारते हुए ।

BY:Nishant Kumar Mishra

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