बेरोजगारी में इश्क...

सुनो,मैं कागज पे लिख रहा..
तुम दिल से इसे समझ जाना।
शब्दो से नही..
मेरे एहसासों के रास्ते से तुम आना।

 सच है मैने तुमसे कभी नही कहा..
तुम मेरे लिए क्या मायने रखती हो।
जाहिर नही किया तुमसे कभी,
पर तुम जिंदगी के हर सुबह शाम मे बसती हो।

एक तो तुम्हरा मोह, दूसरा मै ठहरा बेरोजगार।
अब प्रीतम बनू तुम्हारा ? या एक बेटा जिम्मेदार।

पता है, एक बेरोजगार को इश्क हो जाए ये बहुत महंगा पड़ता है।
दिल कुछ और तो दिमाग कुछ अलग नसीहत देता है।

पर चाहता हूं मैं सामंजन सा बिठाना
इश्क और जिम्मेदारी दोनो को अपनी जिंदगी में उतारना।

सपनो से समझौता नहीं हो पाएगा मुझसे
पर तुम मेरे साथ थोड़ा बहुत मेल बिठा सकती हो क्या?
बेशक हो तुम बड़े घर की बेटी
पर मुझ बेरोजगार से निज सुख दुख बाट सकती हो क्या?।

मैं नकार भी नहीं सकता तुम्हारे प्रति अनकहे एहसासों को
नाकाम कोशिश करी मैने भुलने की अपनी जज्बातों को

पर सोचता हू , क्या मेल बिठाना संभव होगा तुम्हारे लिए?
क्या मर्जी बनेगी तुम्हारी, इतना कुछ त्याग करने के लिए?।

पर फिर भी अपनी शब्दो से तुम्हारे रूह को छूना चाहूंगा।
हो कुछ भी जवाब तुम्हारा, पर एक दफा पूछना चाहुंगा।।

सुनो न, क्या संघर्षशील जिन्दगी के किताब में
संभव है तुम्हारे लिए नया हिस्सा बन पाना?
सुनो, मै कागज पे लिख तो रहा लेकीन तुम दिल से इसे समझ जाना।

महंगे तोहफे न दे पाऊंगा तुम्हे पर..
मेरे लाए सस्ते तोहफे को अपना कर कीमती बना सकती हो क्या?
भुला के कभी बड़े होटलों का खाना…
 मेरे साथ कुल्हड़ चाय पीने वास्ते खुद को मना सकती हो क्या?

वक्त… ये न बहुत महंगी चीज है मेरे लिए।
पर सुनो, मैं उसमे हर रोज तुम्हारा थोड़ा हिस्सा लगाना चाहता हूं
है मेरे पास ढेरों बाते जो उस दरम्यान मैं सिर्फ,
तुमसे करना चाहता हूं।।

और कुछ तो नही पर तुम “वफा” और “इज्जत” का उम्मीद मुझसे जरूर रख सकती हो।
अच्छे -बुरे हर पल, हर दिन में अपने साथ मुझे देख सकती हो

एक वादा कि कल जब मैं कामयाब हो जाऊंगा…
नाकामयाबी से निकल कर जब नयाब हो जाऊंगा

फिर भी…फिर भी अपने पास ही मुझे पाओगी तुम
प्यार- साथ -इज्जत सब एकसमान ही पाओगी तुम।

पर राहें आसान नही होगी तुम्हारी
हम बेरोजगार.. दर्द और निराशा के ले साथ चलते हैं।
जरूरी नहीं मिल जाए जो रहती दिल की ख्वाहिश,
हम तो चोट लगने पे भी अब मुस्कुराने लगते है।

आज दिल की सारी बातें लिख दी मैने, संभव है मेरे करीब आ पाना?
कागज पे तो लिख रहा, लेकिन तुम दिल से इसे समझ जाना।

By: Nishant Kumar Mishra

 
 
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