शहीद की अंतिम यात्रा

माता खड़ी खिड़की के पास
अत्यंत दुःखी चीत्कार कर रही
दरवाजे पर खड़ी बहना
रो रो दहलीज भींगो रही।

वृद्ध पिता की कमजोर आंखे
बेटे का रास्ता निहार रही है
भैया का धीरज टूट रहा
अनुज के अंतिम यात्रा की घड़ी आ रही है |

आज लौट रहा उस घर का दीपक
अपना सर्वोच्च बलिदान दे कर के,
वीरता की परिसीमा पार किया उसने
शहीदों में अपना नाम जोड़ के |

अब घर पे श्रद्धांजलियो का सिलसिला चल रहा है
नौजवान के अंतिम दर्शन को भारी भीड़ उमड़ रहा है |
कुछ संभालने वाले सांत्वना दिए जा रहे हैं
गर्व करने कराने की बात किए जा रहे हैं ।

पर मां.. मां तो कुछ बोल ही नहीं रही
आंसुओ के सिवाय उसके पास कुछ है भी नही।

फफक फफक कर रो रही माता
रट लगाए जा रही बेटे के नाम को
अपार दर्द दुःख दर्शा रहा ये विलाप
झकझोर रहा भीड़ तमाम को।

आज बहना का केवल भाई ही नही शहीद हो लौटा है
रक्षाबंधन का एक हिस्सा उससे अलग हो टूटा है।

आंखो के अनवरत आंसू उसका दुःख कह रहे हैं
भाई की यादें- बातें, बस मोती बन कर बह रहे हैं।

रक्षा की जो सबसे मजबूत कड़ी थी
इस बार भी मैंने वो राखी भेजी थी

फिर क्यों…क्यों भाई मेरा शहीद बन लौटा है
कई सवालों ने बहना के कोमल हृदय को कचोटा है।

वही बाहर खड़ा पिता कहे भी तो क्या कहे
अब वो शहीद का पिता है।
कायल हुआ दुश्मन भी जिसकी बहादुरी की
उसका बचपन तो इन्ही कंधो पे खेलते बीता है।

रुक रुक कर आता आंसुओं का सैलाब, वो मन में आहे भरता है।
एक क्षण गर्व करता तो है पर दूसरे में रोने लगता है।

कहता उनका अंतर्मन, काश तू सही सलामत वापस आता
अपने बहादुरी के किस्से अपने लबों से सुनाता
बेटे मेरे, मै सुकून भरे वो पल जीना चाहता था
यूं तुझे कंधा देकर मैं मरना नहीं चाहता था।

भैया भी खड़े वही,
अपने छोटे के कारनामे सुनते जाते है
करते कोशिश मां – पिता को संभालने की,
पर अपने को नही संभाल पाते हैं

हृदय में दर्द भरा, नैन भी दिखते सजल है
तिरंगे में लिपट आया है जो, भाई नही वो आत्मबल है।
कहते – भाई तेरी शहादत पर फक्र मैं करता हूं
तेरा अग्रजत बन कर भी, तुझको नमन करता हूं।

अब कर रहा वो महावीर महाप्रस्थान,
 सारे रिश्ते नाते छोड़कर।
माता पिता के अधुरे सपने लिए और
 बहना का रक्षासूत्र तोड़ कर ।

उसके गांव, वो बगीचे – पगडंडिया सब वियोग में व्यथित हैं
जा रहा जो तिरंगा ओढ़ के, वो बन चुका एक अविस्मरणीय अतीत है।

पंच तत्व में विलीन हुआ पंच महाभूतो का विशेष संयोजन
जन्मभूमी भी धन्य हुई, सुन शाहिद बेटे के नाम का गुंजन।

पर पीछे अपनो का चीत्कार तड़पन जारी है
सैनिक से शहीद बनना, परिवार पे पड़ता भारी है ।

 
By: Nishant Kumar Mishra
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